1984 के आम चुनाव में राज्य के 14 संसदीय क्षेत्रों में चुनाव ही नहीं हो पाए। इसके बाद राजीव गांधी की पहल थी कि कैसे शांति प्रक्रिया की जाए। 1985 को केंद्र की तत्कालीन राजीव गांधी की सरकार और केंद्र के नेताओं के बीच समझौता हुआ जिसे असम समझौते के नाम से जाना जाता है।
असम समेत भारत के पूर्वोत्तर के कुछ सीमावर्ती इलाके में बांग्लादेशियों और मूल स्थानीय निवासियों की पहचान एक मुश्किल काम है। इन इलाकों में सीमा के दोनों तरफ रहने वाले लोगों का रहन-सहन भाषा और खानपान एक जैसा ही है। यही वजह है कि यहां बाहरी बनाम स्थानीय नागरिकता का सवाल दशकों से सुलगता रहा है। यूं तो इसकी जड़ें आजादी के साथ ही जुड़ी हैं लेकिन सत्तर के दशक में मामले ने काफी हिंसक रूप अख्तियार कर लिया। इस आंदोलन के कई पक्ष थे। एक तरफ स्थानीय लोगों की भाषा, संस्कृति रोजगार, मानवाधिकार जैसे मसले थे तो दूसरी तरफ क्षेत्रीयता और देशी-विदेशी से बढ़कर सांप्रदायिक संघर्ष का खतरा था। सबसे बड़ा खतरा भारतीय नागरिकों के हितों की सुरक्षा का सवाल भी था। आखिरकार भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार और स्थानीय आंदोलनकारियों के बीच 1985 में एक मसले के हल के लिए समझौता हुआ और ये था असम समझौता। यही असम समझौता इन दिनों चर्चा में है जिसकी वजह है नेशनल रजिस्टर्स ऑफ सीटिजन्स यानी एनआरसी। आज बात करेंगे असम समझौते की, जानेंगे क्या था ये समझौता, किन परिस्थितियों में हुआ था ये समझौता।